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Supreme Court ने पलटा हाईकोर्ट का फैसला, किराएदारों को दी बड़ी राहत, मकान मालिकों को झटका

Supreme Court Decision : अगर आप भी किराए (tenant's rights) पर रहते हैं या फिर मकान मालिक (landlord's rights) हैं तो ये आपके लिए जरूरी खबर है। सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court Decision) की ओर से किराएदार को एक बड़ी राहत मिली है। अक्सर किराये को लेकर झगड़े होते हैं और मामला थाने तक पहुंच जाता है लेकिन अब सुप्रीम कोर्ट के फैसले से ऐसा नहीं होगा। आइए जानते है इसके बारे में विस्तार से.

 

Trending Khabar TV (ब्यूरो) : किराया न देने पर थाने जाने वाले मकान मालिक इस खबर को जरूर पढ़ लें। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court Verdict) ने मकान मालिकों को झटका देते हुए किराएदारों को राहत दी है।  


सुप्रीम कोर्ट एक मामले की सुनवाई करते हुए कहा है कि किराएदार (tenant) की ओर से किराया (House Rent) न देना सिविल विवाद (Civil Dispute) का मामला है न की ये आपराधिक मामला नहीं है।  सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यदि किराएदार किराया नहीं देता तो इसके लिए आईपीसी की धारा (IPC section) के तहत केस नहीं हो सकता। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने किराएदार के खिलाफ दर्ज केस को खारिज कर दिया।  

हाईकोर्ट ने दिया था ये फैसला


Supreme Court में नीतू बनाम स्टेट का मामला आया था। किराएदार के खिलाफ आईपीसी की धारा-403 (बेईमानी से संपत्ति का उपयोग करना) और 415 (धोखा) के तहत मामला दर्ज किया गया था। इस मामले में High Court ने याचिकाकर्ता की अर्जी (Petitioner's Application) पर राहत देने से मना कर दिया था और दर्ज केस खारिज करने से भी इनकार किया था। इसके बाद  ये  मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा।   सुप्रीम कोर्ट ने एफआईआर (FIR) को खारिज करते हुए कहा कि किराया पेमेंट (rent payment) न करना सिविल विवाद है। 

ये कोई आपराधिक मामला नहीं बनता है। मकान मालिक (landlord) ने किराएदार पर उक्त आईपीसी की धाराओं (IPC Sections) के तहत मामला दर्ज करवाया था। सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस संजीव और जस्टिस बेला एम ने कहा कि किराया पेमेंट न करना सिविल नेचर का विवाद है।


इसके लिए IPC के तहत केस दर्ज नहीं किया जा सकता। ऐसे में एफआईआर को खारिज किया जाता है। वहीं सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि किराएदार के खिलाफ पेंडिंग किराए का एरियर और मकान खाली करने संबंधित विवाद का निपटारा सिविल कार्यवाही के तहत करने को कहा है। 

ये है  किराया नियंत्रण अधिनियम


1948 में एक केंद्रीय किराया नियंत्रण अधिनियम (Central Rent Control Act) पारित किया गया था। जिसका उद्देश्य ये सुनिश्चित करना था कि न तो जमींदार और न ही किराएदार के अधिकारों का एक दूसरे के द्वारा शोषण किया जा सकता है।  ये अधिनियम इसके अतिरिक्त संपत्ति को किराए (Property Rent) पर देने की नियमों को बताता है। 


ध्यान रहे कि हर राज्य का अपना किराया नियंत्रण अधिनियम (Rent Control Act) अलग होता है। ये अंतर कोई खास अधिक नहीं होता है।  किराए पर कमरा लेते समय अपने मकान मालिक से एक लिखित समझौते पर हस्ताक्षर (Rent Agreement) करके ही ले ताकि किसी तरीके की विवाद की स्थिति में शिकायत की जा सके।